एक राजा था। दातृत्व के लिए बडा ही मशहूर था। उसके पास गया हुआ याचक संतुष्ट होकर ही लौटता था। एक दिन एक संन्यासी उसके पास आया और इच्छित माँगने लगा। राजा ने कहा, यह तो कोई दान करने का समय नहीं, आप बाद में आइए। संन्यासी ने कहा- जब, जिसे, जो चाहिए वह दे देना ही सच्चा दातृत्व कहलाता है, समय निकल जाने के बाद दान देने से क्या लाभ..? दान स्वीकारने से पहले ही यदि याचक मर गया तो..? संन्यासी के ये शब्द सुनकर राजा क्रोधाविष्ट हो गया और उसने झट से उसकी झोली में मिट्टी डाल दी और कहा की, यह लो दान। संन्यासी ने आशीर्वाद दिया, तेरी मिट्टी इसी तरह वृद्धि प्राप्त करती रहे। क्रोध का फल तुरंत मिल जाता है। तो फिर राज्य में मिट्टी के पर्वत बढने लगे। आने-जाने के मार्ग कठिन बनते गये। सर्वत्र धूलि होने लगी। राजा त्रस्त हो गया। ज्योतिषी ने बताया, यदि राजा की निंदा होने लगे तभी ये मिट्टी के पर्वत कम होते जायेंगे, लेकिन राजा तो प्रशंसनीय ही था। उसकी निंदा होना असंभव था। फिर क्या; निंदा हो, इसलिये झूठे नाटक रचाने पडे़ और मिट्टी के पर्वत धीरे धीरे कम होते गये।
सचमुच ऐसा आशीर्वाद कौन स्वीकार कर सकता है..? राग-द्वेष के आशीर्वाद हरदम मिलते हैं। जय-पराजय की भावना अपध्यान है। ऐसा अनर्थदंड तो दिन में न जाने कितनी बार घटित होता रहता है ! किसी को भी अपने वचन से, कृति से ठेस ना पहुँचे, ऐसे कोमल परिणाम होने चाहिए। मान कषाय मन को कठोर बना देता है, फिर मनुष्य जैसा चाहे वैसा व्यवहार करने लगता है।
राजा तो महान दाता था, परंतु उसकी एक अविचारी कृति ने सब किये पर पानी फेर दिया। वैसे ही हम भी अनंत गुणों के स्वामी हैं, लेकिन परद्रव्य से उन्मत्त होकर ज्ञान की महिमा भूल जाते हैं। मान-अभिमान की भावना रखते हैं। परिणामों का जतन करना ही उत्कृष्ट पुरुषार्थ है। इस मनुष्य जन्म का एक-एक क्षण बहुत ही कीमती है, अत: आत्मानुभूति लेनी चाहिये। सरल, सहज परिणामों में ही अपार शक्ति है।
सचमुच ऐसा आशीर्वाद कौन स्वीकार कर सकता है..? राग-द्वेष के आशीर्वाद हरदम मिलते हैं। जय-पराजय की भावना अपध्यान है। ऐसा अनर्थदंड तो दिन में न जाने कितनी बार घटित होता रहता है ! किसी को भी अपने वचन से, कृति से ठेस ना पहुँचे, ऐसे कोमल परिणाम होने चाहिए। मान कषाय मन को कठोर बना देता है, फिर मनुष्य जैसा चाहे वैसा व्यवहार करने लगता है।
राजा तो महान दाता था, परंतु उसकी एक अविचारी कृति ने सब किये पर पानी फेर दिया। वैसे ही हम भी अनंत गुणों के स्वामी हैं, लेकिन परद्रव्य से उन्मत्त होकर ज्ञान की महिमा भूल जाते हैं। मान-अभिमान की भावना रखते हैं। परिणामों का जतन करना ही उत्कृष्ट पुरुषार्थ है। इस मनुष्य जन्म का एक-एक क्षण बहुत ही कीमती है, अत: आत्मानुभूति लेनी चाहिये। सरल, सहज परिणामों में ही अपार शक्ति है।
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